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मंगलवार, जुलाई 31, 2007


"शायर न तो कुल्हाड़ी की तरह पेड़ काट सकता है न इन्सानी हाथों की तरह मिट्टी के प्याले बना सकता है।वह पत्थर से बुत नहीं तराशता, बल्कि जज़्बात और एहसासात की नई-नई तस्वीरें बनाता है। वह पहले इन्सान के जज़्बात पर असर-अंदाज़ होता है और इस तरह उसमें दाख़ली( अंतरंग) तबदीली पैदा करता है और फिर उस इन्सान के ज़रिये से माहौल ( वातावरण) और समाज को तबदील करता है।"
........अली सरदार जाफ़री......


नसीमे-सुबह-तसव्वुर ये किस तरफ़ से चली
कि मेरे दिल में चमन-दर-किनार आती है ॥
कहीं मिले तो मेरे गुल-बदन से कह देना,
तेरे ख़्याल से बू-ए-बहार आती है ॥


नसीमे-सुबह-तसव्वुर=कल्पना का प्रभात समीर, चमन-दर-किनार= वाटिका को बगल में लिये , बू-ए-बहार=वसंत ऋतु की महक

शुक्रवार, जुलाई 20, 2007

" मै शायरी में लहजे को सबसे बड़ी चीज़ समझता हूँ, इसी लहजे में शायर की शख़्सियत छिपी हुई होती है। "
---फ़िराक़ गोरखपुरी---


देखते रहो
-१२ में से ३ बन्द-
आते हैं रौंदते हुए तख़्तो-ताज को
औरंगो-शाने-क़ज़कुलाहा देखते रहो
जन्नत उतार लायेगा रूए-ज़मीन पर
इन्सानियत का अ़ज़्मे-जवाँ देखते रहो

जो मौत बेचते हैं, ज़माने के हाथ आज
फुँकने को है कल उनकी दुकाँ देखते रहो
दुनिया को हम करेंगे हसीं से हसीन-तर
तुम जलवा हाए-लाला-रुखाँ देखते रहो

हम गर्मिए-अ़मल से बदल देंगे काएनात
तुम सोज़ो-साज़े-क़ल्बे-तपाँ देखते रहो
ग़म के पहाड़ काटे जो कटते नहीं ’फ़िराक़’
उड़ जायेंगे वह बनके धुआँ देखते रहो



औरंगो-शाने-कज़कुलाहा= बादशाहों की इज़्ज़तों और सिंघासनों को, रूए-ज़मीन=पृथ्वी पर, अ़ज़्मे-जवाँ =दृढ़ इरादा, लाला-रुखाँ =सुन्दरियों को

शुक्रवार, जुलाई 06, 2007

इस्माइल मेरठी - के बारे में श्री प्रकाश पंडित 'शायरी के नये दौर' में लिखते है- सन् १८४४ ई। में जन्में । १६ वर्ष की आयु में शिक्षा विभाग में नियुक्त हुए और अपनी योग्यता के बल पर बहुत शीध्र फ़ारसी के प्रधान शिक्षक पद पर आसीन हो गये। आपनें नज़्में रुबाइयाँ, गज़लें कहीं और बच्चों के लिये सरल भाषा में उपदेशपूर्ण नज़्म कहीं।

वही 'कारवाँ' वह 'क़ाफ़िला' तुम्हें याद हो कि याद हो
वही 'मंज़िल'--वही ' मरहला' तुम्हें याद हो कि याद हो
मुतफ़ाइलिन, मुतफ़ाइलिन, मुतफ़ाइलिन, मुतफ़ाइलिन
इसे वज़्न कहते हैं शेर का, तुम्हे याद हो कि ना याद हो
यही 'शुक्र' है जो 'सिपास' है वह 'मलूल' है जो 'उदास' है
जिसे 'शिकवा' कहते हो है ' गिला' तुम्हे याद हो कि याद हो
वही 'नुक्स' है वही खोट है, वही ' ज़र्ब ' है, वही 'चोट' है
वही 'सूद' है वही'फ़ायदा' तुम्हे याद हो कि याद हो
वही है' नदी' वही 'नहर' है वही 'मौज' है वही 'लहर' है
यह 'हुबाब' है वही' बुलबुला' तुम्हे याद हो कि याद हो
जिसे ' भेद' कहते हो 'राज़' है जिसे 'बाजा' कहते हो 'साज़' है
जिसे 'तान' कहते हो है'नवा' तुम्हे याद हो कि याद हो
वही' ख़्वार' है जो 'ज़लील' है , वही दोस्त है जो 'ख़लील' है
'बद'--'नेक' है 'बुरा'-'भला' तुम्हे याद हो कि याद हो