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रविवार, जनवरी 20, 2008

जनाब हसरत मोहानी ”शेर ओ सुख़न" के मुताबिक़ :
वोह पुरखु़लूस ( सच्चे) मगर जज़्बाती ( भावुक) आदमी थे। बहुत जल्द किसी के बारे में कोई राय का़यम कर लेते थे।
हसरत की शायरी उनकी आप-बीती जीवनी है। यही उनकी शायरी की सबसे बड़ी विशेषता है और यही उनकी शायरी का दोष भी।
हसरत नें उर्दू ग़ज़ल की पुरानी रवायतों को नये सांचे में ढा़ला, नई तराश-ख़राश की। उनकी शायरी में मुसहफ़ी जैसे कोमल और मधुर भाव और मोमिन जैसी फ़ारसी तरकीबों का समिश्रण एक अजीब सा लुत्फ़ पैदा कर देता है लेकिन उनके यहाँ मीर जैसा सोज़ो गुदाज़ नहीं है। जो शेवये-गुफ़्तार दिल में चरका लगने पर और जीवन भर खून रोने से आता है, उसे हसरत क्यों कर प्राप्त कर सकते थे? वे कामयाब आशिक़ थे।
हसरत तसलीम लखनवी के शिष्य थे और मोमिन स्कूल के तनहा यादगार।

अब तो उठ सकता नहीं आँखों से बारे-इन्तज़ार
किस तरह काटे कोई लैलो-निहारे-इन्तज़ार
उनकी उलफ़त का यकीं हो उनके आनें की उम्मीद
हों ये दोनों सूरतें, तब है बहारे-इन्तज़ार
उनके ख़त की आरज़ू है, उनकी आमद का ख़्याल
किस क़दर फैला हुआ है, कारोबारे-इंतज़ार


वस्ल की बनती है इन बातों से तदबीरें कहीं ?
आरज़ूओं से फिरा करतीं हैं, तक़दीरें कहीं ?

क्यो कहें हम कि ग़मेदर्द से मुश्किल है फ़राग़
जब तेरी याद में हर फ़िक्र से हासिल है फ़राग़

अब सदमये-हिजराँ से भी डरता नहीं कोई
ले पहुँची है याद उनकी बहुत दूर किसी को



बारे-इंतिज़ार= प्रतीक्षा का बोझ, लैलो-निहारे-इंतिज़ार = प्रतीक्षा के दिन-रात, ग़मेदर्द= दर्द की पीडा़, फ़राग़= छुटकारा,हिजरां= वियोग, वस्ल= मिलन

बुधवार, जनवरी 09, 2008

नन्ही पुजारिन : मजाज़

इक नन्ही मुन्नी सी पुजारिन
पतली बांहें, पतली गरदन
भोर भये मन्दिर आई है
आई नहीं है मां लाई है
वक़्त से पहले जाग उठी है
नींद अभी आंखों में भरी है
ठोड़ी तक लट आई हुई है
यूंही सी लहराई हुई है
आंखों में तारों की चमक है
मुखड़े पर चांदी की झलक है
कैसी सुन्दर है क्या कहिए
नन्ही सी इक सीता कहिए
धूप चढ़े तारा चमका है
पत्थर पर इक फूल खिला है
चांद का टुकडा़, फूल की डाली
कमसिन, सीधी,भोली-भाली
कान में चांदी की बाली है
हाथ में पीतल की थाली है
दिल में लेकिन ध्यान नहीं है
पूजा का कुछ ज्ञान नहीं है
कैसी भोली और सीधी है
मन्दिर की छ्त देख रही है
मां बढ़कर चुटकी लेती है
चुपके चुपके हंस देती है
हंसना रोना उसका मज़हब
उसको पूजा से क्या मतलब
खु़द तो आयी है मन्दिर में
मन है उसका गुड़िया-घर में