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गुरुवार, फ़रवरी 20, 2014

कृष्ण बिहारी नूर

बस और इसके सिवा कुछ नहीं है ये तस्वीर,
मेरी हयात* का इक लम्हा हो गया है असीर# ।
* ज़िन्दगी
# क़ैद

रविवार, जुलाई 28, 2013

ज़फ़र

वही है जाने - जहाँ,इस जहाँ के पर्दे में
कि कर रहा है सितम आस्मां के पर्दे में
'ज़फ़र' ज़माने की नैरंगियों ने क्या क्या रंग
दिखाये हमको, बहारों-ख़िज़ां के परदे में 

Wahi hai jane jahan,is jahan ke parde mein
Ki kar raha hai sitam aasman ke parde mein
'Zafar' zamane kii nairangiyon ne kya kya rang
dikhaye hamko , baharon-khizan ke parde mein


बुधवार, जुलाई 17, 2013

ज़ौक

हो उम्रे ख़िज़्र* भी तो कहेंगे ब-वक़्ते-मर्ग+
हम क्या रहे यहाँ अभी आये अभी गये ।
*{ ख़िज़्र जैसी आयु , ख़िज़्र अमर हैं }
+{ मरते वक़्त }

Ho umr-e KHizr bhi to kahenge b- waqt-e-marg,
Hum kya rahe yahan abhi aaye abhi gaye |

ज़ौक
Zauk

शनिवार, जुलाई 13, 2013

है मौज बहरे-इश्क़  वह तूफां  कि  अल हफीज़ 
बेचारा  मुश्ते ख़ाक था        इंसान बह गया  
शेख़  इब्राहिम ज़ौक 

शुक्रवार, जून 24, 2011

यार ख़ुदा का वास्ता , कितने ग़ज़ब की बात है |
तेरी ज़बीं पे सुबह है,      मेरी नज़र में रात है ||

आज ये इल्तिफात क्यों , सैले-तकल्लुफ़ात क्यों ?
क्या कोई ख़ास भेद है ,क्या कोई ख़ास बात है ?

 सुबहे -'अदम' का दूर तक मिलता नहीं कोई निशां |
कितनी दराज़ ज़ुल्फ़ है,        कितनी तवील रात है ||

*Notice the usage of different words with the same meaning - दराज़ and तवील *

 

सोमवार, मई 30, 2011



मिर्ज़ा नज़ीर अकबराबादी का जन्म क़रीब सन १७४० में दिल्ली में हुआ था और १८३० में ९० बरस की आयु में आगरे में समाधि पाई।’शेर ओ शायरी’ में श्री अयोध्या प्रसाद गोयलीय लिखते हैं "नज़ीर संतोषी जीव थे। लखनऊ और भरतपुर स्टेट के निमंत्रणों पर भी नहीं गये। अत्यन्त मृदुभाषी,हँसमुख और मिलनसार थे। सभी से दिल से मिलते थे। हर मज़हब के उत्सवों में बिना भेद भाव शामिल होते थे। पक्षपात और मज़हबी दीवानगी को पास तक नहीं फटकने देते थे। जब मरे तो हज़ारों हिन्दू भी जनाज़े के साथ थे। जवानी में कुछ आशिका़ना रंग में भी रहे ,और लिखा भी,मगर जल्द सम्हल गये। नज़ीर के कलाम में से मामूली अशआर निकाल दिये जाएँ तो विद्वानों का मत है कि वे बड़े-बड़े दार्शनिक और उपदेशकों की श्रेणी में सरलता से बैठाये जा सकते हैं।"

तन्दुरुस्ती और आबरू :----
दुनिया में अब उन्हीके तईं कहिए बादशाह।
जिनके बदन दुरुस्त है दिनरात सालोमाह ॥

जिस पास तन्दुरुस्ती और हुरमतकी हो सिपाह।
ऐसी फिर और कौनसी दौलत है वाह-वाह ॥

जितने सख़ुन हैं सबमें यही है सख़ुन दुरुस्त---
" अल्लाह आबरू से रखे और तन्दुरुस्त" ॥

कलियुग :---
अपने नफ़ेके वास्ते मत औरका नुक़सान कर।
तेरा भी नुक़साँ होयगा इस बात ऊपर ध्यान कर॥

खाना जो खा तो देखकर,पानी जो पी तो छानकर।
याँ पाँवको रख फूँककर और खौ़फ़से गुज़रान कर॥

कलयुग नहीं कर-जुग है यह,याँ दिनको दे और रात ले।
क्या खूब सौदा नक़्द है, इस हाथ दे उस हाथ ले॥

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नज़ीर अकबराबादी के बारे में शायर निदा फ़ाज़ली के ख़्यालात पढ़नें लायक हैं और रेडियोवाणी पर सुननें लायक भी।
इन्सां हैं वही जिनमें हो इन्सान की सीरत 
हैं यूं तो हज़ारों 'ज़फर' इन्सान की सूरत  
_ बहादुर शाह ज़फर _

शुक्रवार, मई 27, 2011

दिल में सौ फ़िक्रो-ख्यालात  हैं, और कुछ भी नहीं 
इसको मामूरा कहे कोई, कि वीराना कहे 
ए ज़फ़र चाहिए इनसाँ को कहे ऐसी बात 
कि  बुरा भी न कहे कोई ,गर अच्छा न कहे 

- बहादुर शाह  ज़फ़र -