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बुधवार, जनवरी 09, 2008

नन्ही पुजारिन : मजाज़

इक नन्ही मुन्नी सी पुजारिन
पतली बांहें, पतली गरदन
भोर भये मन्दिर आई है
आई नहीं है मां लाई है
वक़्त से पहले जाग उठी है
नींद अभी आंखों में भरी है
ठोड़ी तक लट आई हुई है
यूंही सी लहराई हुई है
आंखों में तारों की चमक है
मुखड़े पर चांदी की झलक है
कैसी सुन्दर है क्या कहिए
नन्ही सी इक सीता कहिए
धूप चढ़े तारा चमका है
पत्थर पर इक फूल खिला है
चांद का टुकडा़, फूल की डाली
कमसिन, सीधी,भोली-भाली
कान में चांदी की बाली है
हाथ में पीतल की थाली है
दिल में लेकिन ध्यान नहीं है
पूजा का कुछ ज्ञान नहीं है
कैसी भोली और सीधी है
मन्दिर की छ्त देख रही है
मां बढ़कर चुटकी लेती है
चुपके चुपके हंस देती है
हंसना रोना उसका मज़हब
उसको पूजा से क्या मतलब
खु़द तो आयी है मन्दिर में
मन है उसका गुड़िया-घर में

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