मोहम्मद अल्वी ( जन्म : १९२७ ) को १९९२ में उनके उर्दू काव्य संगृह 'चौथा आसमान ' के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया | नए रूपक और बिम्ब कम शब्दों में ,ताज़ा ढंग से बयान किए जा सकते हैं :यह चौथा आसमान में संकलित कवियायें पढ़कर लगता है |
सुबह
आँखें मलते आती है
चाय की प्याली पकड़ाकर
अखबार में गुम हो जाती है
शहर
कहीं भी जाओ, कहीं भी रहो तुम
सारे शहर एक जैसे हैं
सड़कें सब साँपों जैसी हैं
सबके ज़हर एक जैसे हैं
सुबह
आँखें मलते आती है
चाय की प्याली पकड़ाकर
अखबार में गुम हो जाती है
शहर
कहीं भी जाओ, कहीं भी रहो तुम
सारे शहर एक जैसे हैं
सड़कें सब साँपों जैसी हैं
सबके ज़हर एक जैसे हैं
3 टिप्पणियां:
मोहम्मद अल्वी साहब को पढ़कर बहुत अच्छा लगा. आभार यहाँ प्रस्तुत करने का.
dono kavita bahut hi achhi lagi khas kar subhah,waah.
donoN rachnaaeiN
shaandaar
aur
yaadgaar haiN
s h u k r i y a a .
एक टिप्पणी भेजें