जनाब ख़्वाजा हैदर अली आतिश की पैदाइश १७७८ में उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद शहर की बताई जाती है।आतिश अमीरों के लिये क़सीदे कहने से दूर रहे । इन्हे शायरी और तलवारबाज़ी का शौक़ था एवं मशहूर शायर 'मीर' को आतिश ने अपना उस्ताद माना।
गुल के अफ़ज़ मेरी आँखों में हैं दिलजू कांटे
फूल रखता है तेरी बू तो तेरी ख़ू कांटे
हमनशीं दिल नहीं इक आबला-सा पकता है
जी में आता है भरूं चीर के पहलू कांटे
बद-सरिश्तों को न नेकों का असर हो हरगिज़
सुहबते गुल से न होवें कभी ख़ुशबू कांटे
बाग़े-आलम में जो राहत है तो फिर रंज भी है
ता-कमर गुल है तो यां ता-सरे-ज़ानूं कांटे
जो न दे रंग किसी को उसे होता नहीं रंज
पांव पर मेरे नहीं पाने के क़ाबू कांटे
बद-सरिश्त=बुरे स्वभाव वाले