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शुक्रवार, जून 24, 2011

यार ख़ुदा का वास्ता , कितने ग़ज़ब की बात है |
तेरी ज़बीं पे सुबह है,      मेरी नज़र में रात है ||

आज ये इल्तिफात क्यों , सैले-तकल्लुफ़ात क्यों ?
क्या कोई ख़ास भेद है ,क्या कोई ख़ास बात है ?

 सुबहे -'अदम' का दूर तक मिलता नहीं कोई निशां |
कितनी दराज़ ज़ुल्फ़ है,        कितनी तवील रात है ||

*Notice the usage of different words with the same meaning - दराज़ and तवील *

 

सोमवार, दिसंबर 24, 2007


शायर अदम का जन्म जून १९०९ में तलवंडी, मूसा-खां ( सरहद प्रान्त, पाकिस्तान) में हुआ था
अदम के बारे में प्रकाश पंडित लिखते हैं :’ सुनी सुनाई बातों के प्रसंग में ही मुझे मालूम हुआ कि अपनी नौकरी केसंबंध में ( अदम पाकिस्तानी सरकार के औडिट एण्ड अकाउंट्स विभाग में गज़टेड आफ़ीसर है) बहुत होशियारऔर ज़िम्मेदार हैकराची आने से पूर्व वह काफ़ी समय तक रावलपिन्डी और लाहौर में भी रह चुका है और स्वर्गीयअख़्तर शीरानी से उसकी गहरी छनती थीकारण समकालीन शायर होनें से अधिक एक साथ और एक समानमदिरापान थादोनो बेतहाशा पीते थे और बुरी तरह बहकते थे
श्री पंडित के अनुसार "अदम में व्यक्तित्व और शायरी की प्रवृति का समन्वय, समस्त त्रुटियों और हीनताओं केबावजूद शायार में काव्यात्मक शुद्ध-हृदयता या शायराना खु़लूस दर्शाता हैकवि वही बात कहता है जो अनुभूतियोंसे पैदा होती हैफिर भी, उर्दू शायरी का यह मद्यप और मतवाला शायर उसी मार्ग पर भटकता नज़र आता है जिसेसदियों पहले उमर ख़य्याम ने तराशा और समतल किया थाऔर जिसे पार करके आज के शायर कहीं से कहींनिकल गये हैं।"
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तही भी हों तो पैमाने हसीं मालूम होते हैं
हका़यक़ से तो अफ़साने हसीं मालूम होते हैं ॥
मुलाका़तें मुसलसल हों तो दिलचस्पी नहीं रहती
ये बेतरतीब याराने हसीं मालूम होते हैं ॥
उदासी भी ’अदम’ एहसासे-ग़म की एक दौलत है
बसा-औका़त वीराने हसीं मालूम होते हैं ॥

तही= जो खा़ली हैं, हका़यक़= वास्तविक, मुसलसल= निरन्तर, बसा-औका़त = कभी कभी


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जुनूँ का जो मुआमला है, वो शुस्ता--खु़शनिज़ाम होगा
बिला तकल्लुफ़ जो चल पड़ेआ, वो राहरौ तेज़गाम होगा

जो हर ख़ताकार राह्ज़न को दुआये देकर चला गया है
वो शख़्स मेरा ख़याल ये है बहुत ही आली-मुका़म होगा

हमें गरज़ क्या कि बज़्मे-महशर की हाऊ-हू-में शरीक होते
वहां गये जो हैं छुप-छुपाकर, उन्हे वहां कोई काम होगा

चलो ये मंज़र भी देख ही लेंअदमतकल्लुफ़ की गुफ़्तगू का
सुना है मूसा से तूर पर आज फिर कोई हम-कलाम होगा

जुनूँ= उन्माद ,शुस्ता--खु़शनिज़ाम= सुन्दर,व्यवस्थित,राहरौ= पथिक,तेज़गाम=द्रुतगामी,राह्ज़न=लुटेरा,आली-मुका़म=महान,बज़्मे-महशर=प्रलय-क्षेत्र, मंज़र=दृश्य,हम-कलाम=सम्बोधित
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अदम की शायरी का एक और नमूना मलिका पुखराज की आवाज़ में