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गुरुवार, फ़रवरी 07, 2008

कैफ़ी आज़मी

रेत की नाव,झाग के माँझी
काठ की रेल, सीप के हाथी
हल्की भारी प्लास्टिक की कीलें
मोम के चाक जो रुकें न चलें

राख के खेत,धूल के खलियान
भाप के पैरहन धुएँ के मकान
नहर जादू की,पुल दुआओं के
झुनझुनें चंद योजनाओं के

सूत के चेले,मूँज के उस्ताद
तेशे,दफ़्ती के,काँच के फ़र्हाद
आलिम आटे के और रूए के ईमाम
और पन्नी के शाइरान-ए-कराम
ऊन के तीर,रूई की शम्शीर
सदर मिट्टी का और रबर के वज़ीर

अपने सारे खिलौने साथ लिए,
दस्त-ए-खाली में का़यनात लिये
दो सुतूनों में तान कर रस्सी
हम खुदा जाने कब से चलते हैं
न तो मिलते हैं,न सँभलते हैं

पैरहन= वस्त्र , रूए= रूई, शाइरान-ए-कराम=कविगण, दस्त-ए-खाली =ख़ाली हाथ ,सुतूनों= स्तम्भ, खंभा

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