यार ख़ुदा का वास्ता , कितने ग़ज़ब की बात है |
तेरी ज़बीं पे सुबह है, मेरी नज़र में रात है ||
आज ये इल्तिफात क्यों , सैले-तकल्लुफ़ात क्यों ?
क्या कोई ख़ास भेद है ,क्या कोई ख़ास बात है ?
सुबहे -'अदम' का दूर तक मिलता नहीं कोई निशां |
कितनी दराज़ ज़ुल्फ़ है, कितनी तवील रात है ||
*Notice the usage of different words with the same meaning - दराज़ and तवील *