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बुधवार, मई 16, 2007

मजाज़ की लिखी एक और ग़ज़ल :
कुछ तुझको खबर है हम क्या क्या, ये शोरिशे-दौरां भूल गए
वो ज़ुल्फ़े-परीशां भूल गये, वो दीदा-ए-गिरियां भूल गए
ऐ शौक़े-नज़ारा क्या कहिये, नज़रों मे कोई सूरत ही नहीं
ऐ ज़ौक़े-तसव्वुर क्या कीजै, हम सूरते-जानां भूल गए
अब गुल से नज़र मिलती ही नहीं,अब दिल की कली खिलती ही नहीं
ऐ फ़स्ले-बहारां रुख़्सत हो,हम लुत्फ़े-बहारां भूल गए
सब का तो मुदावा कर डाला,अपना ही मुदावा कर न सके
सब के तो गरेबां सी डाले,अपना ही गरेबां भूल गए
ये अपनी वफ़ा का आलम है, अब उनकी जफ़ा को क्या कहिये
इक नश्तरे-ज़हर-आगीं रखकर, नज़दीके-रगे-जां भूल गए
शोरिशे-दौरां=संसार के उपद्रव, ज़ुल्फ़े परीशां=बिखरे केश, दीदा-ए-गिरियां=रोती आँखें, शौक़े-नज़ारा= देखनें की चाह,ज़ौके-तसव्वुर= कल्पना की प्रवृति, सूरते-जानां=प्रेयसी की शक्ल, फ़स्ले-बहारां=वसन्त ‌‌‌ऋतु,मुदावा=उपचार, नश्तरे-ज़हर= विष में बुझा हुआ नश्तर

1 टिप्पणी:

स्वाती आंबोळे ने कहा…

अब गुल से नज़र मिलती ही नहीं,अब दिल की कली खिलती ही नहीं
ऐ फ़स्ले-बहारां रुख़्सत हो,हम लुत्फ़े-बहारां भूल गए

Wow!
More, please. :)