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शुक्रवार, मई 25, 2007

मिर्ज़ा दाग़ ( जन्म : २५ मई, १८३१) के चुने हुए शेर

न बदले आदमी जन्नत से भी बैतुल-हज़न अपना
कि अपना घर है अपना, और है अपना वतन अपना

जो भले हैं,वो बुरों को भी भला कहते हैं
न बुरा सुनते हैं अच्छे, न बुरा कहते है

वो नक़दे-दिल को हमेंशा नज़र में रखते हैं
जो आंख वाले हैं,अच्छा-बुरा परखते हैं

बादशाहों को भी लोग हैं देने वाले
यह फ़क़ीरों ही को अल्लाह ने हिम्मत दी है

ढ़ूंढ़ती है तुझे मेरी आंखें
ए वफ़ा कुछ तेरा पता भी है

न आया है, न आए उनके वादे का यक़ीं बरसों
यूं ही आज-कल-परसों, मगर मिलते नहीं बरसों


यहाँ सुनिये दाग़ की लिखी ग़ज़ल -" न- रवा कहिये"

बैतुल-हज़न=निवास स्थान, नक़दे-दिल= हृदय -पूँजी, रवा =बेढंगा

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