मिर्ज़ा दाग़ ( जन्म : २५ मई, १८३१) के चुने हुए शेर
न बदले आदमी जन्नत से भी बैतुल-हज़न अपना
कि अपना घर है अपना, और है अपना वतन अपना
जो भले हैं,वो बुरों को भी भला कहते हैं
न बुरा सुनते हैं अच्छे, न बुरा कहते है
वो नक़दे-दिल को हमेंशा नज़र में रखते हैं
जो आंख वाले हैं,अच्छा-बुरा परखते हैं
बादशाहों को भी लोग हैं देने वाले
यह फ़क़ीरों ही को अल्लाह ने हिम्मत दी है
ढ़ूंढ़ती है तुझे मेरी आंखें
ए वफ़ा कुछ तेरा पता भी है
न आया है, न आए उनके वादे का यक़ीं बरसों
यूं ही आज-कल-परसों, मगर मिलते नहीं बरसों
यहाँ सुनिये दाग़ की लिखी ग़ज़ल -" न- रवा कहिये"
बैतुल-हज़न=निवास स्थान, नक़दे-दिल= हृदय -पूँजी, रवा =बेढंगा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें