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शुक्रवार, जुलाई 20, 2007

" मै शायरी में लहजे को सबसे बड़ी चीज़ समझता हूँ, इसी लहजे में शायर की शख़्सियत छिपी हुई होती है। "
---फ़िराक़ गोरखपुरी---


देखते रहो
-१२ में से ३ बन्द-
आते हैं रौंदते हुए तख़्तो-ताज को
औरंगो-शाने-क़ज़कुलाहा देखते रहो
जन्नत उतार लायेगा रूए-ज़मीन पर
इन्सानियत का अ़ज़्मे-जवाँ देखते रहो

जो मौत बेचते हैं, ज़माने के हाथ आज
फुँकने को है कल उनकी दुकाँ देखते रहो
दुनिया को हम करेंगे हसीं से हसीन-तर
तुम जलवा हाए-लाला-रुखाँ देखते रहो

हम गर्मिए-अ़मल से बदल देंगे काएनात
तुम सोज़ो-साज़े-क़ल्बे-तपाँ देखते रहो
ग़म के पहाड़ काटे जो कटते नहीं ’फ़िराक़’
उड़ जायेंगे वह बनके धुआँ देखते रहो



औरंगो-शाने-कज़कुलाहा= बादशाहों की इज़्ज़तों और सिंघासनों को, रूए-ज़मीन=पृथ्वी पर, अ़ज़्मे-जवाँ =दृढ़ इरादा, लाला-रुखाँ =सुन्दरियों को

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