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मंगलवार, जुलाई 31, 2007


"शायर न तो कुल्हाड़ी की तरह पेड़ काट सकता है न इन्सानी हाथों की तरह मिट्टी के प्याले बना सकता है।वह पत्थर से बुत नहीं तराशता, बल्कि जज़्बात और एहसासात की नई-नई तस्वीरें बनाता है। वह पहले इन्सान के जज़्बात पर असर-अंदाज़ होता है और इस तरह उसमें दाख़ली( अंतरंग) तबदीली पैदा करता है और फिर उस इन्सान के ज़रिये से माहौल ( वातावरण) और समाज को तबदील करता है।"
........अली सरदार जाफ़री......


नसीमे-सुबह-तसव्वुर ये किस तरफ़ से चली
कि मेरे दिल में चमन-दर-किनार आती है ॥
कहीं मिले तो मेरे गुल-बदन से कह देना,
तेरे ख़्याल से बू-ए-बहार आती है ॥


नसीमे-सुबह-तसव्वुर=कल्पना का प्रभात समीर, चमन-दर-किनार= वाटिका को बगल में लिये , बू-ए-बहार=वसंत ऋतु की महक

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