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मंगलवार, अक्तूबर 04, 2005

इक़बाल के अलफ़ाज़ :

ज़ुलमे-बहर में खोकर संभल जा।
तड़प जा, पेंच खा-खाकर बदल जा ॥
नहीं साहिल तेरी क़िस्मत में ऐ मौज ।
उभरकर जिस तरह चाहे निकल जा॥

ज़ुलमे-बहर= समुद्र की गहराईयों में, मौज =लहर

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