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मंगलवार, अक्तूबर 25, 2005

जनाब क़तील शिफ़ाई का जन्म २४ दिसंबर १९१९ , हरिपुर ,हज़ारा( सरहद) का बताया जाता है उनकी शायरी में, माधुर्य तथा शब्द सौन्दर्य होने के साथ साथ शायर का मनोवृतान्त भी है, जो कविता को सही मायने में सशक्त बनाता है ।

आज और कल

जब छलकते हैं ज़रो-सीम के गाते हुए जाम
एक ज़हराब सा माहौल में घुल जाता है
काँप उठता है तिही-दस्त जवानो का ग़रूर
हुस्न जब रेशमो-कमख़्वाब में तुल जाता है

मैंने देखा है कि इफ़्लास के सहराओं मे
क़ाफ़िले अ़ज़्मते-एहसास के रुक जाते हैं
बेकसी गर्म निगाहों को झुलस देती है
दिल किसी शो'ला-ए-ज़रताब से फुक जाते हैं

जिन उसूलों से इबारत है मुहब्बत की असास
उन उसूलों को यहाँ तोड़ दिया जाता है
अपनी सहमी हुई मंज़िल के तहफ़्फ़ुज़ के लिये
रहगुज़ारों में धुआँ छोड़ दिया जाता है

मैंने जो राज़ ज़माने से छुपाना चाहा
तूने आफ़ाक़ पे उस राज़ का दर खोल दिया
मेरी बाँहों ने जो देखे थे सुनहरे सपने
तूने सोने की तराजू मे उन्हें तोल दिया

आज इफ़्लास ने खाई है ज़रो-सीम से मात
इसमें लेकिन तेरे जल्वों का कोई दोष नहीं
ये तग़य्युर इसी माहौल का पर्वुर्दा है
अपनी बेरंग तबाही का जिसे होश नहीं

रह्गुज़ारों के धुँधलके तो ज़रा हट जाएँ
अपनें तलवों से ये काँटे भी निकल जाएँगे
आज और कल की मुसाफ़त को ज़रा तै कर लें
वक़्त के साथ इरादे भी बदल जाएँगे

ज़रो-सीम= सोने चाँदी , ज़हराब= तरल विष , तिही-दस्त=ख़ाली हाथ
इफ़्लास= निर्धनता, अज़्मते-एहसास=भावों की महानता , ज़रताब= धन,असास=नींव,
तहफ़्फ़ुज= रक्षा, आफ़ाक़= संसार ,तग़य्युर=परिवर्तन, पर्वुर्दा = वातावरण, मुसाफ़त= अन्तर

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