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मंगलवार, मई 06, 2008

असग़र गोंडवी मार्च १, १८८४ ई. में पैदा हुए ।
असग़रहुसैन साहब ’असग़र’ शायर न होते तो भी उनकी प्रसिद्धि में कोई अंतर न आता।
आप सदाचारी और पवित्र थे ।
आमदनी अल्प होते हुए भी न कभी आपने तंगदस्ती का किसी से ज़िक्र किया,
न कभी मेहमाँनवाज़ी में अंतर रहनें दिया।
असग़र का प्रेम ईश्वरीय प्रेम है ।
आपके किसी शेर में दार्शनिकता है तो किसी में आध्यात्मिकता की झलक।
जो भी कहा गया है, बहुत गहरे में डूबकर कहा गया है। ":- शेर-ओ-सुख़न

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यह इश्क़ ने देखा है, यह अक़्ल से पिन्हां है
क़तरे में समंदर है, ज़र्रे में बयाबाँ है॥
धोका है यह नज़रों का, बाज़ीचा है, लज़्ज़त का।
जो कुंजे-क़फ़स मे था, वोह अस्ल गुलिस्तां है ।
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2 टिप्‍पणियां:

स्वाती आंबोळे ने कहा…

बहुत अच्छे!

इनका एक शेर सुना था जो मुझे बहुत पसंद आया था,

सुनता हूँ बड़े ग़ौर से अफ़साना-ए-हस्ती
कुछ ख़्वाब है, कुछ अस्ल है, कुछ तर्जे बयाँ है..

ब्लॉग नये रूप में और खूबसूरत लग रहा है। :)

Unknown ने कहा…

स्वाती ,
तुम्हारा तर्जे बयाँ शेर भी सटीक है।
एक और भी शेर असग़र साहब का पढ़ा था, उसे भी post कर रही हूँ।
Lavender plants की तस्वीर पिछले साल की है।