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रविवार, मई 25, 2008

मिर्ज़ा दाग़ ( जन्म २५ मई १८३१)
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बशर ने खा़क पाया, लाल पाया या गुहर पाया।
मिज़ाज अच्छा अगर पाया तो सब कुछ उसने भर पाया ॥

समझो पत्थर की तुम लकीर उसे।
जो हमारी ज़बान से निकला ॥

जिसमे लाखों बरस की हूरें हो।
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई॥

कहीं दुनिया मे नहीं इसका ठिकाना ऐ ’दाग़’!
छोड़कर मुझको कहाँ जाय मुसीबत मेरी ?

P گوهر gauhar, or gohar, s.m. Nature, essence, substance, stuff, matter; form; origin, root, stock, extraction; seed, offspring;--any hidden virtue;--intellect; wisdom;--a pearl; jewel, gem, precious stone:--lustre (of a gem, or a sword;--cf.



4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इस प्रस्तुति का. वर्ड वेरिफिकेशन, अगर असुविधा न हो तो, अलग कर दें. टिप्पणी करना सरल हो जायेगा.

Yunus Khan ने कहा…

हूरों वाले शेर पर हम सलाम पेश करते हैं ।
मुकर्रर मुकर्रर ।

राज यादव ने कहा…

छोड़कर मुझको कहाँ जाय मुसीबत मेरी ?
उम्दा!!!

ये ग़ज़ल दाग देहलवी साहब की है या कोई और दाग साहब है? उत्तर का इंतज़ार रहेगा .....अच्छा लगा आप को पढना.

विचारो की जमीं

siddheshwar singh ने कहा…

बहुत बढ़िया!